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यदि उस समय महात्मा गांधी चाहते तो पंडित नेहरु की जगह वल्लभभाई पटेल होते देश के पहले प्रधानमंत्री 




आज के भारतीय परिवेश की कल्पना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को याद किए बिना अधूरी है. आज कई लोग इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि को याद कर रहे हैं लेकिन उनके साथ हमें इस देश के महान नेता सरदार वल्लभभाई पटेल को भी नहीं भूलना चाहिए जिनकी वजह से आज भारत देश इतना बड़ा और विस्तृत है. 600 देशी रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने का कारनामा सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ही कर दिखाया था.

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल 




सरदार वल्लभ भाई पटेल को नवीन भारत का निर्माता माना जाता है. सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के बेजोड़ शिल्पी थे. दिखने में बेहद शांत और स्वभाव से नरम वल्लभभाई पटेल समय के साथ अपने स्वभाव में बदलाव के लिए जाने जाते हैं. भारत के प्रथम गृह मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष का दर्जा प्राप्त था. उनके द्वारा किए गए साहसिक कार्यों की वजह से ही उन्हें लौह पुरुष और सरदार जैसे विशेषणों से नवाजा गया. 

Peruse: Biography of Sardar Vallabhbhai Patel in Hindi: इनके बिना ना जानें कितने टुकड़े होते भारत के? 




गांधीजी का नेहरू प्रेम 


कई लोगों का मानना है कि अगर महात्मा गांधी ने अपना नेहरू प्रेम नहीं दिखाया होता तो देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू नहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल होते. आजादी के समय कांग्रेस के अंदर जवाहरलाल नेहरू से भी ज्यादा पकड़ सरदार वल्लभभाई पटेल की थी. सरदार वल्लभभाई पटेल के कार्य के सभी प्रशंसक हुआ करते थे. लेकिन वे गांधीजी की इच्छा का सम्मान रखते हुए दूसरे नंबर पर रहकर संतुष्ट थे. 

बन सकते थे प्रधानमंत्री 


इतिहासकार मानते हैं कि वर्ष 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरादार वल्लभ भाई पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे. अगर चुनाव होते तो साफ था सरदार वल्लभभाई पटेल जीत जाते लेकिन गांधी जी यहां हस्तक्षेप कर नेहरू जी को अध्यक्ष बनवा दिया. कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू जी को ब्रिटिश वाइसरॉय ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए आमंत्रित किया. अगर सभी चीजें अपनी तरह चलती रहती तो उम्मीद थी कि सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते. स्वतंत्र भारत के पहले तीन वर्ष पटेल उप-प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे 

500 रियासतों को मिलाने का कार्य 


सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि 'रियासतों को तीन विषयों – सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा. इसके बाद सरदार पटेल ने एक नामुमकिन से कार्य को सफल कर दिखाया. देश की 600 छोटी-बड़ी रियासतों को उन्होंने भारत संघ का हिस्सा बनवाया. 

सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पहले पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देशी रियासतों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था. उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप तीन राज्यों को छोड़ सभी भारत संघ में सम्मिलित हो गए. 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें 'भारत संघ' में सम्मिलित हो चुकी थी. ऐसे में जब जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध विद्रोह हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया. जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया. 

अब शेष था कश्मीर. 


कश्मीर पर नेहरू जी के हस्तक्षेप की वजह से आज तक यह राज्य भारत के लिए एक सरदर्द है. नेहरू ने शुरू से ही सबको एक साथ लेकर चलने की रणनीति बनाए रखी और इसी कारण उन्होंने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देते हुए इसके एकीकरण का मामला अपने हाथों में रखा. नेहरू जी अगर चाहते तो वह कश्मीर को भी सरदार पटेल को सौंप उसका पूर्ण विलय बिना किसी शर्त पर करा सकते थे. जिसके बाद मुमकिन था आज घाटी में खून की नदियां ना बहतीं. 

वल्लभ भाई पटेल का जीवन 


वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ. वह खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी संतान थे. उनकी माता का नाम लाडबा पटेल था. 

बचपन से ही वह बहुत मेधावी थे. उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली. अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुए मानते थे. 

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन परिचय 


वल्लभ भाई झावर भाई पटेल, भारत के महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक नेताओं में से एक थे। उन्होंने भारत की आजादी के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह माना जाता है कि उनका जन्म 31 अक्टूबर सन् 1875 को गुजरात के नडियाद नामक गाँव में हुआ था। अक्सर लोग उन्हें सरदार के नाम से संबोधित किया करते थे। 

उन्होंने 22 वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परिक्षा पास की थी। वह अपने आस-पास के लोगों के लिए एक बहुत ही साधारण व्यक्ति थे, परन्तु उनमें एक मजबूत इच्छा शक्ति भी थी। वह एक बैरिस्टर बनना चाहते थे। 36 वर्ष की अवस्था में, वह अपने इस सपने को पूरा करने के लिए इंग्लैंड गए और माध्यमिक धर्मशाला मंदिर में प्रवेश लिया। उन्होंने अपने 36 महीने के कोर्स को सिर्फ 30 महीनों में ही पूरा कर लिया। वह भारत में वापस आने के बाद अहमदाबाद के एक सबसे सफल बैरिस्टर बने। 

महात्मा गाँधी के कार्यों व आर्दशों से प्रेरित होकर, वह भी भारत की स्वतंत्रता के लिए किए जा रहे संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए कर के भुगतान के विरोध में खेड़ा, बारडोली व गुजरात के अन्य क्षेत्रों से किसानों को संगठित किया और गुजरात में एक गैर-हिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन की स्थापना की। वह अपने लक्ष्य में सफल हुए और ब्रिटिश सरकार को उस वर्ष के राजस्व कर के भुगतान को माफ करना पड़ा। इसी के साथ वह गुजरात के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए। सन् 1920 में वह गुजरात प्रदेश की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए गए और सन् 1945 तक इस पद पर कार्यरत रहे। वह गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के पूर्णरूप से समर्थक थे और उन्होंने गुजरात में शराब, अस्पृश्यता और जातीय भेदभाव जैसी भावनाओं का जमकर विरोध किया। वह सन् 1922, 1924 और 1927 में अहमदाबाद की नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में चुने गये। जब महात्मा गाँधी जेल में थे, तब उन्होंने भारतीय ध्वज फहराने को प्रतिबंधित करने वाले अंग्रेजों के कानून के खिलाफ सन् 1923 नागपुर में सत्याग्रह आन्दोलन का नेतृत्व भी किया था। सन् 1931 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किये गये। वह 1934 और 1937 में कांग्रेस के अखिल भारतीय चुनाव प्रचार में सबसे आगे थे और सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के आयोजन में एक प्रमुख नेता थे। उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुख रूप से शामिल होने के कारण पुलिस द्वारा कैद कर लिया गया था और सन् 1945 में जेल से रिहा किया गया। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद, वह भारत के पहले गृह मंत्री व उप-प्रधान मंत्री रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने पंजाब और दिल्ली में शरणार्थियों के लिए राहत शिविर का आयोजन किया। 565 अर्द्ध-स्वायत्त रियासतों का एकत्रीकरण करके भारत को एकता सूत्र में बांधने का श्रेय भी इनको ही मिला है। पटेल जी, महात्मा गाँधी के साथ पूर्ण रूप से जुड़े हुए थे। महात्मा गाँधी की मृत्यु के बाद से उनकी भी स्थिति बिगड़नी शुरू हो गई थी। गाँधी जी की मृत्यु के दो महीने के भीतर ही 15 दिसंबर 1950 को दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया। वह एक साहसी और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति थे। उन्हें' भारत का लौह पुरुष' कहना एक सत्य कथन है। 

सरदार वल्लभ भाई पटेल के संबंध में प्रमुख तथ्य व जानकारी 

जन्म 31 अक्टूबर 1875 (नडियाद) 

मृत्यु 15 दिसंबर 1950 (बॉम्बे) 

पिता झावरभाई (किसान) 

माता लाड बाई 

बड़े भाई सोमभाई, नरसीभाई, और विठ्ठलभाई पटेल 

छोटे भाई काशीभाई 

बहन दहीबा 

पुत्र दहयाभाई 

पुत्री मानीबेन 

निवास स्थान महामारी रोग से ग्रसित होने के कारण, वह नडियाद में अकेले रहने लगे और धीरे-धीरे स्वस्थ हो गये 

पत्नी का कैंसर पटेल की पत्नी कैंसर रोग से ग्रसित थी। उनकी मृत्यु एक प्रमुख सर्जिकल ऑपरेशन के दौरान हुई थी। 

शुरुआती राजनीतिक जीवन सितंबर 1917 में बोर्सद में पटेल जी के उत्साहवर्धक भाषण ने गाँधी जी की स्वराज माँग की याचिका पर भारतीयों को हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित कर दिया था। 

भारतीयों की बलपूर्वक दासता के लिए पटेल द्वारा यूरोपियों का विरोध किया गया। 

उन्होंने खेड़ा जिले में महामारी और भुखमरी के समय राहत प्रयासों का आयोजन किया। 

वल्लभभाई पटेल ने गांव-गांव जाकर करों के भुगतान को जमा न करने के लिए अधिकतम लोगों को एकत्र कर राज्यव्यापी विद्रोह शुरू किया। 

पटेल ने गाँधी जी के असहयोग आंदोलन का समर्थन करते हुए यात्रा में शामिल होने के लिए 300,000 से अधिक सदस्यों को एकत्र किया और 15 लाख रुपये फंड में दिए। 

Author:-

Kirti sharma karaiya

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Comments

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