Rbi loan moratorium

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सु्प्रीम कोर्ट में लोन मोरटोरियम मामले की सुनवाई के दौरान तीन जजों की बेंच ने यह फैसला सुनाया कि मोरटोरियम पीरियड के दौरान लोन का पूरा ब्याज माफ करना मुमकिन नहीं है। बैंकों को डिपॉजिटर्स को पेमेंट करना ही होगा। 




जस्टिस शाह ने कहा, "कोर्ट को इकोनॉमिक पॉलिसी के मामले में बोलने का हक नहीं है। महामारी का असर सभी सेक्टर्स पर पड़ा है और सरकार प्रवासी मजदूरों को ट्रांसपोर्टेशन मुहैया कराने सहित कई तरह के सहयोग दे रही है। जबकि महामारी के दौरान सरकार को आमदनी के मोर्चे पर कोई सहयोग नहीं मिला। यहां तक कि GST से होने वाली आमदनी भी घट गई।" 

शाह ने कहा, "हमने रिलीफ के बारे में अलग से सोचा। लेकिन ब्याज पूरी तरह माफ करना मुमकिन नहीं है क्योंकि बैंकों को अपने डिपॉजिटर्स और पेंशनर्स को पेमेंट करना होगा" 

शाह ने यह भी कहा कि इकोनॉमी पॉलिसी और फाइनेंशियल पैकेज के बारे में केंद्र सरकार और RBI आपस में विचार करने के बाद कोई फैसला लेगी। 

जस्टिस शाह ने कहा कि केंद्र सरकार और RBI ने कई तरह के कदम उठाए हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि कोरोनावायरस संक्रमण के दौरान केंद्र ने जरूरी उपाय नहीं किए हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा याचिकाकर्ताओं को ब्याज पर लगने वाले ब्याज माफी, मोरटोरियम पीरियड बढ़ाने या किसी खास सेक्टर के लिए स्पेशल फायदा नहीं मिलेगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इस बात का कोई जस्टिफिकेशन नहीं है कि क्यों सिर्फ 2 करोड़ रुपए तक के लोन के ब्याज पर लगने वाला ब्याज माफ किया जाएगा। लोन मोरटोरियम पीरियड के दौरान सिर्फ 2 करोड़ रुपए तक के लोन के ब्याज पर लगा ब्याज माफ किया जाएगा। अगर किसी ने इससे बड़ा लोन लिया है तो उसे ब्याज माफी का फायदा नहीं मिलेगा।

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