Dessehra or vijyadashmi special

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Kirti sharma


dussehra ki kahani in hindi 





क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं; यह पूजा आयुध/शस्त्र पूजा के रूप में भी जानी जाती है 


अपराजिता पूजा को विजयादशमी का महत्वपूर्ण भाग माना जाता है, हालाँकि इस दिन अन्य पूजाओं का भी प्रावधान है। हम बताने जा रहे हैं इस पूजा की विधि और कथा। ... 

जब सूर्यास्त होता है और आसमान में कुछ तारे दिखने लगते हैं तो यह अवधि विजय मुहूर्त कहलाती है। इस समय कोई भी पूजा या कार्य करने से अच्छा परिणाम प्राप्त होता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण को हराने के लिए युद्ध का प्रारंभ इसी मुहुर्त में किया था। इसी समय शमी नामक पेड़ ने अर्जुन के गाण्डीव नामक धनुष का रूप लिया था। दशहरे का दिन साल के सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। यह साढ़े तीन मुहूर्त में से एक है (साल का सबसे शुभ मुहूर्त - चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अश्विन शुक्ल दशमी, वैशाख शुक्ल तृतीया, एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (आधा मुहूर्त))। यह अवधि किसी भी चीज़ की शुरूआत करने के लिए उत्तम है। हालाँकि कुछ निश्चित मुहूर्त किसी विशेष पूजा के लिए भी हो सकते हैं। 

क्षत्रिय, योद्धा एवं सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं; यह पूजा आयुध/शस्त्र पूजा के रूप में भी जानी जाती है। वे इस दिन शमी पूजन भी करते हैं। पुरातन काल में राजशाही के लिए क्षत्रियों के लिए यह पूजा मुख्य मानी जाती थी। ब्राह्मण इस दिन माँ सरस्वती की पूजा करते हैं। वैश्य अपने बहीखाते की आराधना करते हैं। कई जगहों पर होने वाली नवरात्रि रामलीला का समापन भी आज के दिन होता है। रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाकर भगवान राम की जीत का जश्न मनाया जाता है। ऐसा विश्वास है कि माँ भगवती जगदम्बा का अपराजिता स्त्रोत करना बड़ा ही पवित्र माना जाता है। बंगाल में माँ दुर्गा पूजा का त्यौहार भव्य रूप में मनाया जाता 

दशहरा की कथा 




- पौराणिक मान्यता के अनुसार इस त्यौहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भगवान पुरूषोत्तम राम ने दस सिर वाले आतातायी रावण का वध किया था। तभी से दस सिरों वाले रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन इस प्रतीक के रूप में जलाया जाता है ताकि हम अपने अंदर के क्रोध, लालच, भ्रम, नशा, ईर्ष्या, स्वार्थ, अन्याय, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करें। 

- महाभारत की कथा के अनुसार दुर्योधन ने जुए में पांडवों को हरा दिया था। शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा। अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिपकर रहना था और यदि कोई उन्हें पा लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन का दंश झेलना पड़ता। इस कारण अर्जुन ने उस एक साल के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का छद्म रूप धारण कर कार्य करने लगे। एक बार जब उस राजा के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गाय की रक्षा के लिए मदद मांगी तो अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापिस निकालकर दुश्मनों को हराया था। 

- एक अन्य कथानुसार जब भगवान श्रीराम ने लंका की चढ़ाई के लिए अपनी यात्रा का श्रीगणेश किया तो शमी वृक्ष ने उनके विजयी होने की घोषणा की थी।

Author

Kirti sharma karaiya

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