Kisan kanoon 2020

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नए कृषि कानूनों का किसान क्‍यों कर रहे हैं विरोध? 




हर बदलाव को सुधार नहीं कहा जा सकता है. कुछ विनाश का कारण भी बन सकते है. देश ने ऐति‍हासिक सुधार के नाम पर नोटबंदी को झेला और भयावह परिणाम देखने को मिले. इस एक कदम से लाखों नौकरियां और सैकड़ों जिंदगियां खत्म हो गईं. जीएसटी को भारत की आर्थिक आजादी के रूप में दिखाया गया. दो फीसदी जीडीपी बढ़ाने का दावा किया गया. 

जीएसटी आधी रात में आ तो गया. लेकिन, कभी जीडीपी को ऊपर नहीं बढ़ा पाया. अलग से अर्थव्यवस्था को और नीचे लेकर चला गया. कोविड-19 से लड़ने के नाम पर पूरे देश में महज 4 घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन किया गया. 21 दिन की अभूतपूर्व लड़ाई बताई गई. कोरोना तो खत्म नहीं हुआ. लेकिन, हजारों प्रवासी मजदूरों की जिंदगियां देश की सड़कों पर खत्म हो गईं. लाखों नौकरियां चली गईं. अर्थव्यवस्था निगेटिव हो गई. 

अब इतिहास बनाने के नाम पर किसानों को चुना गया है. सदन में तमाम हो-हल्‍ले के बीच किसानों की नई आर्थिक आजादी की कहानी लिखी जा चुकी है. एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने द्वारा लाए गए सुधारों को नई आजादी के रूप में प्रचारित किया है. लेकिन, सच कितना है, इसे लेकर कई सवाल हैं. 


संसद ने किसानों के लिए 3 नए कानून बनाए हैं. 




पहला है ''कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020''. इसमें सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है. किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे. लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है. बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं. 

क्‍या होगा असर? 


यही खुली छूट आने वाले वक्त में एपीएमसी मंडियों की प्रासंगिकता को समाप्त कर देगी. एपीएमसी मंडी के बाहर नए बाजार पर पाबंदियां नहीं हैं और न ही कोई निगरानी. सरकार को अब बाजार में कारोबारियों के लेनदेन, कीमत और खरीद की मात्रा की जानकारी नहीं होगी. इससे खुद सरकार का नुकसान है कि वह बाजार में दखल करने के लिए कभी भी जरूरी जानकारी प्राप्त नहीं कर पाएगी. 

इस कानून से एक बाजार की परिकल्पना भी झूठी बताई जा रही है. यह कानून तो दो बाजारों की परिकल्पना को जन्म देगा. एक एपीएमसी बाजार और दूसरा खुला बाजार. दोनों के अपने नियम होंगे. खुला बाजार टैक्स के दायरे से बाहर होगा. 

सरकार कह रही है कि हम मंडियों में सुधार के लिए यह कानून लेकर आ रहे हैं. लेकिन, सच तो यह है कि कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का जिक्र तक नहीं है. यह तर्क और तथ्य बिल्कुल सही है कि मंडी में पांच आढ़ती मिलकर किसान की फसल तय करते थे. किसानों को परेशानी होती थी. लेकिन कानूनों में कहीं भी इस व्यवस्था को तो ठीक करने की बात ही नहीं कही गई है. 

मंडी व्यवस्था में कमियां थीं. बिल्कुल ठीक तर्क है. किसान भी कह रहे हैं कि कमियां हैं तो ठीक कीजिए. मंडियों में किसान इंतजार इसलिए भी करता है क्योंकि पर्याप्त संख्या में मंडियां नहीं हैं. आप नई मंडियां बनाएं. नियम के अनुसार, हर 5 किमी के रेडियस में एक मंडी. अभी वर्तमान में देश में कुल 7000 मंडियां हैं, लेकिन जरूरत 42000 मंडियों की है. आप इनका निर्माण करें. कम से कम हर किसान की पहुंच तक एक मंडी तो बना दें. संसद में भी तो लाखों कमियां हैं. क्या सुधार के नाम पर वहां भी एक समानांतर निजी संसद बनाई जा सकती है? फिर किसानों के साथ क्यों? 

क्‍या ज‍िम्‍मेदारी से बचना चाहती है सरकार? 


आज सरकार अपनी जि‍म्मेदारी से भाग रही है. कृषि सुधार के नाम पर किसानों को निजी बाजार के हवाले कर रही है. हाल ही में देश के बड़े पूंजीपतियों ने रीटेल ट्रेड में आने के लिए कंपनियों का अधिग्रहण किया है. सबको पता है कि पूंजी से भरे ये लोग एक समानांतर मजबूत बाजार खड़ा कर देंगे. बची हुई मंडियां इनके प्रभाव के आगे खत्म होने लगेंगी. ठीक वैसे ही जैसे मजबूत निजी टेलीकॉम कंपनियों के आगे बीएसएनल समाप्त हो गई. इसके साथ ही एमएसपी की पूरी व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी. कारण है कि मंडियां ही एमएसपी को सुनिश्चित करती हैं. फिर किसान औने-पौने दाम पर फसल बेचेगा. सरकार बंधन से मुक्त हो जाएगी. 

जानिए क्या हैं कृषि से जुड़े तीन बिल, जो अब बन गए हैं कानून 


तो आइए हम आपको बताते हैं कि इन तीनों बिलों में ऐसा क्या है और क्यों किसान इसका विरोध कर रहे हैं. 

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने पार्लियामेंट में किसानों को लेकर तीन बिल पास कराए हैं. जिनपर राष्ट्रपति ने रविवार को हसताक्षर कर दिए हैं और अब यह तीनों बिल कानून बन चुके हैं. इन बिलों के विरोध में तमाम अपोज़ीशन पार्टियां और किसान विरोध कर रहे हैं. साथ ही पंजाब में किसानों रेल रोको आंदोलन किया हुआ है. तो आइए हम आपको बताते हैं कि इन तीनों बिलों में ऐसा क्या है और क्यों किसान इसका विरोध कर रहे हैं. 

पहला बिला 


केंद्र सरकार ने इस बिल में किसानों को अपनी फसल मुल्क में कहीं बेचने के लिए अज़ाद किया है. साथ ही एक राज्य के दूसरे राज्य के बीच कारोबार बढ़ाने की बात भी कही गई है. इसके अलावा मार्केटिंग और ट्रांस्पोर्टिशन पर भी खर्च कम करने की बात कही 

दूसरा बिल 


इस बिल में सरकार ने कृषि करारों पर राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का प्रोविज़न किया गया है. यह बिल कृषि पैदावारों की बिक्री, फार्म सर्विसेज़, कृषि बिजनेस फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और एक्सपोर्टर्स के साथ किसानों को जुड़ने के लिए मजबूत करता है. कांट्रेक्टेड किसानों को क्वॉलिटी वाले बीज की सप्लाई यकीनी करना, तकनीकी मदद और फसल की निगरानी, कर्ज की सहूलत और फसल बीमा की सहूलत मुहैया कराई गई है. 

तीसरा बिल 


इस बिल में अनाज, दाल, तिलहन, खाने वाला तेल, आलू-प्‍याज को जरूरी चीजो की फहरिस्त से हटाने का प्रोविजन है. माना जा रहा है कि बिल के प्रोविज़न से किसानों को सही कीमत मिल सकेगी क्योंकि बाजार में मुकाबला बढ़ेगा. 

अकाली दल ने तोड़ा गठबंधन 


इन बिलों का विरोध सबसे ज्यादा पंजाब और हरियाणा में हो रहा है. हालांकि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद कई और सूबों में प्रोटेस्ट होने लगे हैं. यहां तक कि भाजपा हिमायती पार्टी शिरोमणी पार्टी अकाली दल (शिअद) ने खुद इसका विरोध करते हुए NDA से पल्ला झाड़ लिया है. इससे पहले अकाली दल की जानिब से मोदी हुकूमत मोदी सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर हरसिमरत कौर ने भी इस्तीफा दे दिया था. 

क्यों प्रोटेस्ट कर रहे हैं किसान 


इन बिलों को लेकर किसान और अपोज़ीशन पार्टियों का कहना है कि वह मंडी व्यवस्था खत्म कर किसानों को एमएसपी (Minimum Support Price) से खत्म करना चाहती है. यानी किसानों को डर है कि उन्हें उनकी फसलों पर मिलने वाला एमएसपी खत्म किया जा रहा है. हालांकि केंद्र सरकार ने साफ कहा है कि किसानों का एमएसपी.

Creater

Kirti sharma




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